Friday, August 17, 2012

सुलगता भारत

कल ही हमने देश की आजादी का जश्न मनाया लेकिन वाकई क्या इस समय हम लोग आजाद है ?
आज देश गुलाम है सम्प्रदायिक मानसिकता का जो देश के टुकड़े करने पर तुली हुयी है और हम लोग इस के खिलाफ आवाज तक नहीं निकाल रहे अगर यही हालात रहे तो देश टुकडो में बंट जायेगा  
आज मेरा मन क्षुब्ध है देश के मोजूदा हालात से जिसमे भारत के नागरिको के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है और सरकार चुप चाप देख रही है 
देश के सविधान के अनुसार देश के हर नागरिक को देश के किसी भी कोने में रह कर अपना जीवन यापन करने का अधिकार प्राप्त है लेकिन कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग आज इस मौलिक अधिकार का हनन करने पर तुले हुए है और इस सबको सरकार का मूक समर्थन प्राप्त है 
मूक समर्थन इस लिए की अगर आप किसी गलत चीज के विरूद्ध नहीं और उसके खिलाफ कुछ नहीं कहते है या तटस्थ रहते है तो एक प्रकार से आप उस चीज का मूक रूप से समर्थन ही कर रहे है 
देश में आज कुछ लोग माहोल खराब करने पर तुले हुए है और देश को टुकडो में बाँटने की साजिश रची जा रही है और कुछ खास प्रान्त के लोगो को निशाना बनाया जा रहा है जो अपनी आजीविका कमाने के लिए या पढाई के लिए दुसरे प्रान्त में है 
महाराष्ट्र और कर्नाटक में पूर्वोत्तर के निवासियों को धमकाया जा रहा है और उन पर हमले की अफवाहे फैलाई जा रही है और उन्हें राज्य छोड़ कर वापिस जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है 
कुछ समय पहले इस प्रकार की हिंसक घटनाये महाराष्ट्र से शुरू हुयी थी जब मनसे का गठन राज ठाकरे के नेत्र्तव में हुआ और इस नवनिर्मित राजनितिक दल ने लोगो का ध्यान आकर्षित करने के लिए मराठी अस्मिता के नाम पर गरीब उत्तर प्रदेश और बिहार वासियों पर हिंसक हमले शुरू किये यह कहते हुए की इन दुसरे प्रान्त के लोगो को वजह से महाराष्ट्र के लोगो के अधिकारों का हनन हो रहा है जब की यह टुच्चा राजनितिक दल खुद सविधान के मौलिक अधिकारों के हनन में लगा हुआ था और तब न तो राज्य सरकार और न केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को तवज्जो दी और उस समय भी उत्तर भारतीयों का बहुत बड़ी संख्या में वापिस पलायन हुआ था 
आज यही स्थिति देश के अन्य राज्यों में भी पनपती जा रही है इन अफवाहों का दोष मढ़ा जा रहा है सोशल नेट्वर्किंग साईटो फेसबुक और ट्विट्टर इत्यादि पर 
आज संसद में समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने सोशल नेटवर्किंग साईटो और बल्क एसएम्एस सेवायो पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की बात कही और सरकार ने आनन फानन में बल्क एसएम्एस सेवायो पर आगामी १५ दिनों तक प्रतिबंध लगा दिया और गाहे बगाहे सरकार सोशल नेट्वोर्किंग पर भी लगाम लगाने की तैयारी अपने राजनितिक फायदे के लिए कर रही है 
प्रतिबन्ध के लिए बहाना यह दिया जा रहा है की इन सब का इस्तेमाल अफवाहे फ़ैलाने वाले कर रहे है जब की सरकार इन साईटो पर अपने नकारात्मक प्रचार से डरी हुयी है 
लेकिन अगर सरकार का सोचना सही है टो फिर सब से पहले समाचार चेनलो पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए क्योकि हमारे देश के समाचार चेनल समाचार कम सनसनी ज्यादा परोसते है और किसी भी चीज  के नकारात्मक विचारो को मुख्य मुद्दे की तरह प्रस्तुत करते है 
मेरी नजर में इन अफवाहों को फ़ैलाने में यह सब टीआरपी के भूखे भेड़िये ज्यादा आगे है 
लेकिन इस वक्त सब से जरुरी यह है की सरकार अपने राजनितिक फायदों को छोड़ देश की अखंडता और समप्रभुता  लिए काम  करे और सुलगते भारत को टुकडो में बटने से बचाए वरना अगर यही हालात रहे तो हमें देश के एक राज्य से दुसरे राज्य में जाने के लिए वीजा लेना पड़ेगा 
जरा सोचिये आप अखंड भारत देखना चाहते है या टुकड़े टुकड़े हुआ भारत 

Saturday, August 4, 2012

फेसबुक और अन्धविशवास

वैसे तो हम भारतीय लोग बहुतेरे अन्धविश्वासी होते है और हम लोगो में कई अन्धविश्वास प्रचलित है जिसमे की बिल्ली रास्ता काट जाये तो उस रास्ते से ना जाना या फिर छींक आने  पर थोड़ी देर रुक जाना प्रमुख है लेकिन यह तो बस उदाहरण भर है मुख्य सूची तो कही लम्बी है 
समय के साथ साथ इस अन्धविश्वास का रूप भी काफी बदल गया है और यह समय पाकर हम लोगो के साथ आधुनिक हो गया है और नये रूप में हम लोगो के भीतर मौजूद है 
मैं आप लोगो का ध्यान आकर्षित करना चाहता हु फेसबुक एवं अन्य सोशल नेटवर्किंग साईट पर आधुनिक युग के अन्धविशवास की जिसमे जाल में अपने आप को तथाकथित आधुनिक मानने वाले युवा भी फसे हुए है 
मैं जिस अंधविश्वास की बात कर रहा हु वह है तो काफी पुराना लेकिन समय पाकर बस इसका स्वरुप बदल गया और इसने आज को युवा को अपने शिकंजे में जकड लिया है 
फेसबुक और अन्य सोशल नेट्वोर्किंग साईट पर आपको इस प्रकार की अन्धविश्वासी पोस्ट बहुत सी मिल जाएगी जिसमे किसी देवी या देवता की फोटो पोस्ट कर इसे अधिक से अधिक शेयर करने की अपील की जाती है और कहा जाता है की जो ऐसा करेगा उसे जल्द ही कोई शुभ सूचना मिलेगी और इस अपील पर ध्यान न देने की दशा में आपको नुक्सान होने की बात कही जाती है 
बस फिर क्या लोगो में इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करने की होड़ लग जाती है 
पहले मैं भी इस प्रकार के फोटो को कभी कभार शेयर कर दिया करता था लेकिन फिर मेरी नजर एक ऐसी पोस्ट पर पड़ी जिसने मेरा सोचने का नजरिया बदल दिया यह पोस्ट उस अन्धविशवास भरी पोस्ट के विरुद्ध में लिखी गयी थी जिसमे एक ऐसी फोटो पोस्ट की गयी थी जिसमे बादलो के बीच भगवान् शिव का अक्स दिखाई दे रहा था और यह कहा गया था की इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करे और जल्दी ही भगवान् शिव की कृपा से आपको कोई शुभ समाचार प्राप्त होगा इस पोस्ट के विरोध में इसी फोटो को दुसरे रूप में पेश किया गया था जिसमे भगवान् शिव की जगह विजय माल्या का अक्स दिखाई दे रहा था और व्यंग्य के रूप में लिखा था की इस पोस्ट को शेयर करने पर जल्दी ही विजय माल्या की कृपा आप पर बरसेगी और आप को सारा वर्ष शराब और बीयर की कोई कमी नहीं रहेगी और साथ ही लिखा था की इस प्रकार की कोई भी फोटो फोटोशोप पर आसानी से बनायी जा सकती है और हम बेवकूफ लोग यह सोचते ही नहीं 
उस दिन मैं इस पोस्ट को पड़ कर पेट पकड़ कर हँसा और यह निर्णय लिया की इस प्रकार की पोस्ट कभी शेयर नहीं करूँगा 
आज यह ब्लॉग आप सब को यही समझाने के लिए लिख रहा हु की जल्द से जल्द इस अन्धविशवास से बाहर निकले  और ईश्वर पर भरोसा रखे बस और फिर देखिये आप पर हर तरह की कृपा बरसेगी 


Friday, August 3, 2012

चेहरा बदलता आन्दोलन

आज अन्ना जी का अनशन समाप्त हुआ और उन्होंने राजनितिक दल बनाने की घोषणा भी कर दी और कहा की देश की राजनीति को नया विकल्प देने के लिए एक नया दल का गठन करेंगे 
उनके इस निर्णय से काफी हो हल्ला हो रहा है और बहुत से लोग इसे गलत तो बहुत से लोग इसे सही निर्णय करार दे रहे है 
मैंने अपने पिछले ही ब्लॉग में लिखा था की यह आन्दोलन दिशा से भटकता जा रहा है इसी कारणवश इसे पहले जैसा आपर जनसमर्थन नहीं मिल पा रहा है जिसकी अपेक्षा टीम अन्ना को थी और आखिर वही हुआ जिसका मुझे अंदेशा था अनशन समाप्त और आन्दोलन को नयी दिशा देने के लिए राजनितिक दल गठन करने का ऐलान हो गया 
बहुत से लोग कह रहे है की उन्हें अन्ना के इस निर्णय से झटका लगा है और वह महसूस कर रहे है की इस आन्दोलन के नाम पर देश की बेवकूफ बनाया गया 
आज मेरे एक दोस्त ने एक व्यंग्य लिखा था की शायद किसी ने अन्ना जी को अनिल कपूर अभिनीत नायक फिल्म दिखा दी और उसी का अन्ना जी पर असर हो गया जो उन्होंने राजनितिक दल के गठन का ऐलान कर दिया 
यह तो हुयी व्यंग्य की बात लेकिन इसी फिल्म में परेश रावल द्वारा  अभिनीत बंसल जी नामक पात्र ने एक चीज बहुत ही सही बोली थी की सब लोग कहते है राजनीति एक गटर है और हम लोग चाहते तो है की यह गटर साफ़ हो जाये लेकिन पहल कोई नहीं करता क्योकि गटर को साफ़ करने के लिए गटर में उतरना पड़ता है इसी प्रकार राजनीति रूपी गटर को साफ़ करने के लिए उसमे उतरना ही पड़ेगा मतलब सक्रिय राजनीति में आना ही पड़ेगा 
आप गटर के बाहर रह कर गटर की साफ़ सफाई के लिए किसी और को निर्देशित नहीं कर सकते यह हिम्मत तो आपको स्वयं उठानी होगी 
अन्ना राजनीति को सही रूप रंग देने के लिए स्वयं राजनीति दल  का गठन कर अपनी भूमिका निभाना चाहते है तो यह निर्णय काबिले तारीफ़ है 
अगर अन्ना सरकार को जन लोकपाल न लाने के लिए कोसते है और कहते है की सरकार उनकी नहीं सुनती और वह किसी राजनीतिक दल का साथ भी नहीं लेना चाहते तो स्वयं का राजनीतिक दल बना कर चुनाव लड़ने का फैसला बिलकुल सही है इस से उन्हें अपनी शक्ति का भी अंदाजा हो जायेगा और पता चल जायेगा की जनता क्या चाहती है 
यह तो हुयी अन्ना के इस निर्णय की बात लेकिन इस फैसले को आकार देने में क्या व्यवहारिक दिक्कते आ सकती है उस बार में चर्चा करना चाहूँगा 
अगर टीम अन्ना यह कहती है की वह लोग राजनितिक दल का गठन करेंगे और चुनाव प्रकिर्या में हिस्सा लेंगे तो कहना चाहूँगा की टीम अन्ना में जिन लोगो का नाम लिया जाता है उनकी गिनती करने के लिए भी उंगलियों की संख्या भी ज्यादा होगी तो फिर चुनाव में यह लोग  उम्मीदवार कहा से लायेंगे 
अगर लोकसभा चुनाव की बात की जाये तो पुरे देश में लोकसभा की ५४३ सीट है ऐसे में अगर मोजूदा टीम अन्ना अगर गिनती की चंद सीटें जीत भी ले तो इस से कोई बड़ा बदलाव संभव नहीं है तो चुनौती सब से पहले अन्ना  के सामने है उनकी कसौटी पर खरे उम्मीदवार चुनने की 
कहने को तो यह आसान सा लगता है दरअसल यही सब से मुश्किल है क्योकि टीम अन्ना को अपनी कसौटी पर खरे उतरते ऐसे उम्मीदवार चुनने होंगे जो अपने क्षेत्र में जाने पहचाने चेहरे हो क्योकि राजनीति में लोग किसी अपिरचित चेहरे को सिर्फ अन्ना के कहने पर वोट नहीं देने वाले 
कोई भी राजनीतिक दल का गठन करने के लिए और चुनाव लड़ने के लिए पैसे का होना सब से जरुरी है और यह पैसा कहा से आयेगा ?
टीम अन्ना के बारे में पहले से ही यह कहा जा रहा था की इसमें कई लोग सिर्फ अपनी राजनीतिक महत्व आकांशा  पूरी करने के लिए इस आन्दोलन से जुड़े है जो एक  प्रकार से इस निर्णय से सही साबित प्रतीत होगा और यही बात इनके सबसे ज्यादा खिलाफ जाएगी 
कुछ भी हो इस अन्य राजनीति दल का भविष्य तो हमें आने वाला समय ही बताएगा तब तक हम सबको इन्तेजार करना होगा 

Monday, July 30, 2012

दिशा भटकता आन्दोलन

जन लोकपाल लाने के लिए अन्ना जी का आन्दोलन सरकार के खिलाफ फिर से जारी है लेकिन कही न कही कुछ कमी सी है 
पिछले दिनों इस आन्दोलन के बारे में बहुत कुछ नकारात्मक मीडिया में छाया रहा और यह कहा जाने लगा की यह आन्दोलन फ्लॉप शो साबित हो रहा है जिस का एक कारण यह भी कहा गया की इस आन्दोलन को मीडिया उतनी तवज्जो नहीं दे रहा जितना पिछली बार दिया था जब अन्ना इसी मुद्दे को लेकर अनशन पर बैठे थे 
तब लोगो में जो जोश और उत्साह था वह इस आन्दोलन में दिखाई नहीं दे रहा तब बच्चा बच्चा अन्ना के समर्थन में था लेकिन पिछले कुछ समय में ऐसा क्या हुआ की स्थिति एक दम से बदल गयी हालाकि आन्दोलन के शुरू होने के चार दिन बाद जब अन्ना स्वयं अनशन पर बैठे तब सूना पड़ा आन्दोलन स्थल पे काफी हलचल दिखी लेकिन यह उस भीड़ के आगे कुछ भी नहीं थी जो पिछली बार रामलीला मैदान पर जुटी थी 
काफी लोग इसका दोष मीडिया की सर दे रहे है की मीडिया अन्ना के आन्दोलन की कवरेज केंद्र सरकार के दबाव में नहीं कर रहा जो कुछ हद तक सही हो सकता है लेकिन इसका  तो सीधा सा यह मतलब हुआ की आपका आन्दोलन मीडिया की ताकत के बिना कुछ भी नहीं और पुराना आन्दोलन तो मीडिया द्वारा पानी पर निर्मित एक बुलबुला था जो समय पाकर फूट गया 

इसका अर्थ यह भी हुआ की आपका पुराना आन्दोलन लोगो के दिलो दिमाग पर पूरी तरह से असर कर पाने में नाकाम हुआ अगर ऐसा न हुआ होता तो आज यह स्थिति न हुई होती 

आज दैनिक भास्कर में टोनी जोसेफ द्वारा अभिव्यक्ति के अंतर्गत लिखे लेख की चंद पंक्तियों का जिक्र करना चाहूँगा  "सोचिए किसी दिन आप काम से वापस लौटते हैं और अपने अपार्टमेंट को आग की लपटों से घिरा पाते हैं। आपके आस-पड़ोस वाले आग बुझाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। कोई बाल्टी से पानी उड़ेल रहा है, कोई हॉजपाइप के सहारे आग पर पानी फेंक रहा है तो कोई लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने में लगा है। ऐसे में आप क्या करेंगे? उनके साथ आग बुझाने की कोशिशों में जुट जाएंगे या फिर हाथ पर हाथ धरे उनके नाकाफी साबित होते प्रयासों पर टीका-टिप्पणी करने लगेंगे? |"

मैं टोनी जी उक्त पंक्तियों से पूर्ण रूप से सहमत हू लेकिन जब यह आन्दोलन अपनी दिशा से ही भटकता हुआ दिख रहा है तो इसे पहले जैसा समर्थन ना मिलना वाजिब है क्या है वह वजह और क्या है वह मुद्दे जिसकी वजह से लोग इस आन्दोलन से पहले जैसा जुड़ाव महसूस नहीं कर रहे 

निश्चय ही अन्ना की कोशिशे काबिले तारीफ है लेकिन अन्ना टीम द्वारा दिए जा रहे अलग अलग ब्यान बाजी से उनके आपसी मतभेद और राजनितिक महत्वाकांक्ष सामने आ रही है 

सब से पहले तो अन्ना यह कहते है की हमारी मांग है की जन लोकपाल बिल पास करो नहीं तो गद्दी छोडो, अगर यह सरकार हट जाती है तो फिर नयी सरकार कौन बनाएगा जाहिर है विपक्षी दलों में से ही सरकार बनेगी और अन्ना जब उन विपक्षी दलों  समर्थन भी नहीं करते तो फिर देश कौन और कैसे चलाएगा और कहते है  की हमारी कोई राजनीतिक मह्ताव्कंषा नहीं है तो फिर भाई देश कौन और कैसे चलाएगा देश चलाने के लिए एक पूर्णकालिक सरकार की आवश्यकता है जो की आप पूरी होने नहीं देना चाहते  और अभी इस आन्दोलन में वह अपनी इस बात से पलटी मार गए और कहते है की हम एक पार्टी बनायेगे जो आने वाले लोकसभा चुनाव में सरकार के सामने खड़े होंगे 

अन्ना ने पिछले आन्दोलन के दौरान कहा की देश में जहा जहा भी चुनाव होंगे वहा हम लोग जायेगे और सरकार द्वारा समर्थित उमीदवारो को  वोट न देने की अपील करेंगे तो इस बात पर भी टीम अन्ना अडिग नहीं रही सिर्फ हरयाणा में हुए विधान सभा उपचुनाव को छोड़ दे तो उन्होंने अपना यह वादा भी नहीं निभाया 
 पिछला आन्दोलन जब शुरू हुआ था तो बाबा रामदेव और अन्ना ने एक साथ मंच साँझा किया था लेकिन दोनों में वैचारिक मतभेद होने से और अलग अलग आन्दोलन चलाने से भी इस आन्दोलन को नुक्सान ही हुआ है 

क्या सिर्फ जन लोकपाल तक ही है अन्ना का अनोद्लन ? देश के सामने और भी कई जवलंत मुद्दे है जिनका अन्ना जिक्र तक नहीं करते ? क्यों नहीं अन्ना आरक्षण के खिलाफ कुछ बोलते जिसने हमारे देश को जड़ तक खोखला किया हुआ ? आरक्षण के खिलाफ न बोलना एक प्रकार से आरक्षण का समर्थन करने जैसा ही है और सब जानते है देश में फैले हुए भ्रष्टाचार की एक महत्वपूर्ण वजह आरक्षण भी है लेकिन इस विषय में ना तो अन्ना तो न ही रामदेव कुछ बोलने को तैयार है बस दोनों अपनी डफली अपना राग गा रहे है 

सरकार भी इसे देख रही है और समझ रही है की आन्दोलन में श्रेय लेने की होड में फूट पड़ गयी है और अब यह पहले जैसा जन समर्थन इसी वजह से नहीं पा रहा है

कल अन्ना के समर्थकों ने प्रधानमंत्री के घर के सामने प्रदर्शन किया और अंदर पत्थर और कोयले भी फेके जो की पूर्णता गलत है एक तरफ तो अन्ना गाँधीवादी होने का दंभ भरते है और दूसरी तरफ हिंसक तरीके से उनके  समर्थक प्रदर्शन करते है

उपरोक्त बातों के कारण ही आन्दोलन अपनी दिशा से भटकता हुआ नजर आ रहा है और आम जनता इसमें पहले जैसा जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही है 

अगर अन्ना को लगता है की जन समर्थन उनके पक्ष में है तो उन्हें आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी बना कर जरुर सरकार के समक्ष खड़ा होना चाहिए और अपनी मनमर्जी की सरकार बना कर अपने आन्दोलन के उद्देश्य को पूरा करना चाहिए 

Friday, July 20, 2012

वक्त कितना बीत गया पर बदला कितना कम


वक्त कितना बीत गया पर बदला कितना कम 
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में एक बड़ा रोचक किस्सा प्रचलित है। बात उस समय की है जब कुछ स्कूल ऐसे होते थे, जहां सिर्फ राजा-महाराजाओं के बच्चे ही पढ़ सकतेे थे। एक राजा साहब ऐसे थे जिनके बेटे के साथ एक गरीब के बेटे को भी स्कूल भेजा जाता था। इस बात की क्षेत्र में बड़ी चर्चा थी। गरीब इस बात पर बल्ले-बल्ले कि उसका बेटा राजा के बेटे के साथ पढऩे जाता है। कुछ दिन बाद लोगों को पता चला कि गरीब का बेटा राजा के बेटे के साथ स्कूल तो जाता है, पर क्लास में नहीं बैठता। बाहर बैठा रहता है। अब लोगों की उत्सुकता और बढ़ गई। सब सोचते यह क्या चक्कर है। कुछ लोगों का मन नहीं माना। किसी तरह से मास्टरजी तक पहुंच बनाई गई। पूछा। मास्टरजी ने कहा - हां, वह आता तो है। राजाजी ने यह कहलवाकर उसे भिजवाया था कि राजकुमार रानीजी के बहुत दुलारे हैं। आप ठहरे मास्टर, राजकुमार ठहरे बच्चे। हो सकता है राजकुमार कुछ गलती कर बैठें या कोई सबक ठीक से न सीख सकें। आपको गुस्सा आ सकता है। तो आप अपना गुस्सा इस गरीब बच्चे पर उतार लें। डांट लें, डंडा मार लें, चपत लगा लें। जब पूरा गुस्सा उतर जाए तो राजकुमार को प्यार से फिर सबक पढ़ा दें।

राजे-रजवाड़े नहीं रहे। किस्सा पुराना पड़ गया है, लेकिन किस्से की जो मूल सोच है, वह आज भी कहीं मौजूद है। कई बार खुले तौर पर देखने को भी मिलती है। राजनीति में ही देख लीजिए। कांग्रेस में कौआ भी कहीं गलती से कमाल दिखा दे तो क्रेडिट युवराज राहुल को ही जाता है। दलित के घर वे खाना खा लें तो जय-जयकार। पीडि़त की पीड़ा सुन भर लें तो वाह-वाह। मीडिया के सवाल का सही-सटीक जवाब दे दें तो विजन, इनोवेटिव सोच सब नजर आ जाए। लेकिन जब पूरी ताकत झोंकने के बाद भी उत्तरप्रदेश में राहुल का करिश्मा नहीं चल पाता तो पार्टी मौन धारण कर लेती है। हर कोई वह माथा तलाशने में जुट जाता है, जिस पर हार का ठीकरा फोड़ा जा सके। कभी-कभी सलमान खुर्शीद जैसे नेता भूल से सच बोल जाते हैं, मगर हल्ला इतना मचता है कि उन्हें भी जबान पीछे खींच लेनी पड़ती है। याद कीजिए, खुर्शीद ने सिर्फ इतना ही तो कहा था कि छोटी-छोटी उपलब्धियों से बात नहीं बनेगी, राहुल को बड़े फलक पर काम करना होगा। राजकुमार के बारे में यह राय भी कबूल नहीं है पार्टी को।

समाज में भी ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। समर्थ को सब माफ, बाकी को सब पाप। अभी पिछले दिनों की बात है। कोर्ट ने कहा - शहर में गुंडागर्दी बहुत बढ़ गई है, पुलिस कुछ कर नहीं रही। पुलिस को गुस्सा आया। गुंडे तो पकड़ में आए नहीं, तो वह ऑफिस जाने-आने वाले उन दोपहिया वाहन चालकों के चालान बनाने में जुट गई, जिनके वाहन में मड गार्ड नहीं हैं या जिनके साइलेंसर से अधिक धुआं निकल रहा है। पिछली दफा जब कोर्ट नाराज हुआ था खराब रोड और बिगड़े ट्रैफिक पर, तो प्रशासन ने हेलमेट अनिवार्य करने का बीड़ा उठा लिया था। है ना गजब?

एक और दृश्य देखिए - शहर में एक शॉपिंग मॉल के सामने कुछ अफसरों की गाडिय़ां नियमों को धता बताते हुए सड़क पर खड़ी थीं। गाडिय़ां तो अमूमन रोज ही खड़ी रहती हैं, पर उस दिन हल्ला इसलिए मच गया कि यह सब अखबार की सुर्खियों में आ गया था। सवाल उठने लगे। नियमों का पालन कराने वाले ही नियमों को कैसे तोड़ रहे हैं? ऊपर वालों ने नीचे वालों को डांटा, नीचे वाले और नीचे वालों पर भड़के। अंतत: जिन अफसरों की गाडिय़ां वहां खड़ी पाई गई थीं, उन्होंने अपने-अपने ड्राइवर को नोटिस थमा दिए - बताओ गाड़ी गलत पार्किंग में क्यों खड़ी की थी? गोयाकि साहब को तो कुछ पता ही नहीं। अब आप ही बताइए, क्या इन ड्राइवरों में आपको क्लास के बाहर बैठे उस गरीब बच्चे की सूरत नजर नहीं आती। बेशक वक्त काफी बीत गया है, पर शायद उतना बदला नहीं

भास्कर ब्लॉग में अनिल कर्मा जी द्वारा लिखे गए ब्लॉग के सोजन्य से 

Tuesday, June 12, 2012

खरी खरी


अमरीका की क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने कल वह बात कही जी जानती तो पूरी कांग्रेस है लेकिन कोई भी इस बारे में बोलने को तैयार नहीं था . कल स्टेंडर्ड एंड पुअर्स S&P ने कहा की आने वाले समय में भारत की क्रेडिट रेटिंग और गिराई जा सकती है क्योकि भारत सरकार के कहने को प्रधानमंत्री तो श्री मनमोहन सिंह है लेकिन सत्ता की ताकत उनके हाथ में न होकर श्रीमती सोनिया गाँधी के हाथ में है 
भारत सरकार वैश्विक उदारीकरण की नीतियों का पालन अपनी सत्ता की मजबूरियों के चलते नहीं कर पा रही और सरकार की निति निर्धारण में सहयोगी दलों का अत्यधिक दबाव है जिस कारण कई बार सही फैसले भी राजनितिक वोट बैंक के डर से नहीं लिए जा पा रहे है 

S&P ने कहा की मनमोहन सिंह जब नरसिम्हा राव सरकार में वित् मंत्री थे तब उनका पर्दर्शन बेहतर था लेकिन अब जब प्रधान मंत्री है और उनसे बेहतर भविष्य की उम्मीद थी तो हर मोर्चे पर उनकी सरकार विफल है 
कांग्रेस की भी इस विषय में बोलती बंद है और उसके सब गला फाडू प्रवक्ता इस मुद्दे पर चुप है 
हो भी क्यों न हाई कमान ने इस विषय में मुह खोलने से जो मना कर दिया होगा वरना
दिग्विजय सिंह को शायद इसमें भी आर एस एस का हाथ लगता
बडबोले मनीष तिवारी को को इसमें विपक्षी पार्टियों की साजिश की बू आती होगी 

लेकिन कुछ भी हो अब तो इस सच पर विदेशी ठप्पा भी लग गया 
अब तो कांग्रेस को अपनी गलत नीतियों में कुछ सुधार करना चाहिए वरना 2014 चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा है 

Wednesday, March 14, 2012

रेल बजट का विश्लेषण

आज माननीय रेल मंत्री श्री दिनेश त्रिवेदी द्वारा संसद में रेल बजट प्रस्तुत किया गया
जैसे की होता आया है हर वर्ष की तरह घोषणा ही घोषणा और यह रेल मंत्री भी घोषणावीर बन गए
लेकिन जिस एक बात ने हम रेल फेंस का दिल जीत लिया वह यह की इस बजट में त्रिवेदी जी ने यह दर्शा दिया की वह आंखे बंद कर के तृणमूल कांग्रेस की अपनी नेत्री सुश्री ममता बनर्जी के पिछलग्गू नहीं बने रहना चाहते
उन्होंने राजनीती से ऊपर उठ कर वह किया जो पिछले कई वर्षों से कोई रेल मंत्री करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था
जी हा मैं बात कर रहा हू रेल किराए में बढोतरी की
आठ वर्षों के बाद रेल किराए में मामूली बढोतरी की गयी जिसे लेके बहुत हो हल्ला हुआ और गन्दी राजनीती शुरू हो गयी
सुश्री ममता जी ने फिर से अपना राग अलापना शुरू कर दिया की किराये में वृदि हर कीमत पर वापिस लेनी होगी और इस बयान में उनका घमंड साफ़ झलकता है की वह अपने किसी मातहत को बिना अपनी मर्जी के कुछ नहीं करने देगी
गौरतलब है की भारतीय रेल की यात्रा पुरे विश्व में सब से सस्ती यात्रा है लेकिन जैसा की हम जानते है रेलवे की स्थिति इस वक्त बदहाल है और इस हालात को सुधरने के लिए पैसे की जरुरत है यह तो सब कहते है लेकिन पैसे आयेगा कहा से या देगा कौन इस बात पर सब खामोश है
अगर हम देखे तो किराये में यह बढोतरी नो वर्ष बाद की गयी है इन वर्षों में खर्चे की दरे कही बड गयी है
हमें नयी रेले चाहिए नए रेल कारिडोर चाहिए चमचमाते स्टेशन चाहिए बेहतर यात्री सुविधए चाहिए लेकिन वही वर्षों पुरानी कीमत में
तो यह कैसे संभव होगा ?
अगर आज हम अपने उन माननीय सांसदों से कहे की आप आज से आठ वर्ष पुराने वेतन पर काम कर तो फिर देखे
हमारे यह माननीय सांसद अपना खर्चा पानी ज्यादा करने के लिए तो कभी भी एक जुट हो जाते है लेकिन रेलवे की माली हालत के बारे में ऐसा क्यों नही सोचते
सिर्फ आपने फायदे के लिए दिखावाबजी करते है जबकि इन लोगो को आम जनता से कही कोई सरोकार नही है
जिस आम आदमी के फायदे के लिए कहा जा रहा है की रेल किराये में वृद्धि वापिस होनी चाहिए वह आम आदमी तो इस मामूली वृद्धि से कही नाखुश नजर नहीं आ रहा
एक समझदार इंसान यही कह रहा है की यह वृद्धि तो काफी पहले से जरूरी थी लेकिन राजनितिक फायदे के लिए भूतपूर्व रेल मंत्री ऐसा करने से चूकते रहे
आम आदमी का तो सिर्फ इतना खाना की पैसा भले थोडा ज्यादा ले लो लेकिन हमें कम से कम कुछ तो वह सब सुविधाए दो जिनके सब्जबाग हर रेल मंत्री दिखता आ रहा है
बेहतर यात्री सुविधाए
बेहतर यात्री सुरक्षा उपाय
गाडियों की गति में बढोतरी
विश्व क्लास के रेलवे स्टेशन
सुगमता से टिकटों की उपलब्धता
यह सब अभी दूर की कौड़ी है जिनपे चर्चा तो हर रेल बजट में होती है लेकिन घोषणा सिर्फ घोषणा ही बनकर रह जाती है
राजनितिक दबाव की वजह से रेल मंत्री ने इस्तीफ़ा तो दे दिया है और जल्दी ही हमें एक नया रेल मंत्री भी मिलेगा
रेल मंत्री का यह ब्यान मैं वो ही करता रहूंगा जो भारतीय रेलवे के लिए जरूरी है। मैं कुछ भी होने से पहले एक भारतीय हूं और मेरे लिए किसी भी चीज से पहले देश आता है। पार्टी से पहले भी देश आता है, परिवार से पहले भी देश आता है। भगत सिंह ने तो देश के लिए जान दे दी थी। मेरे सामने तो सिर्फ मंत्रीपद है ने उनकी देश के सामने एक अच्छे राजनेता की छवि प्रस्तुत की है
उनके इसके कृत्य के लिए भले ही उन्हें मंत्री पद गवाना पड़ा हो लेकिन उनकी छवि एक एक भारतीय के दिल में एक आम लालची राजनेता की न होकर अच्छे राजनेता की हो गयी है
श्री दिनेश त्रिवेदी का ऐसे बयान और बजट के लिए हार्दिक आभार

Thursday, March 10, 2011

आई आर सी टी सी का मौन व्रत

आई आर सी टी सी एजेंट लोग इन १ मार्च से बंद है जिस वजह से भारत भर के ई टिकेट एजेंट न तो नया बुकिंग कर पा रहे है और न ही पुराने बनाये गए बुकिंग रद्द कर पा रहे है
आज ११ वा दिन है और अभी तक आई आर सी टी सी की और से इस मसले पर कोई अधिकृत सूचना जारी नहीं की गयी और इसी तरह का लापरवाही रवैया रहा तो एजेंट लोग अब किसी प्रकार की घोषणा की उम्मीद भी नहीं कर रहे
लोग इन बंद है नया टिकेट जारी नहीं होगा यह सरासर गलत ऊपर से अन्याय यह की पुराने बनाये गए टिकेट भी रद्द नहीं हो पा रहे
एजेंट को टिकेट कैंसल करने के लिए आई आर सी टी सी को या फिर मास्टर एजेंट को मेल लिखना पड़ता है और इस प्रकार टिकेट कैंसल होने मैं काफी समय बरबाद होता है इस प्रकिर्या से टिकेट कैंसल करने मैं ५ से ६ घंटे का समय तक लग रहा है अगर इस दोरान चार्ट बन जाये तो फिर इस हानि का जिमेदार कौन होगा ?
आई आर सी टी सी ने हर मुद्दे पर मौन व्रत धारण कर रखा है जो की आने वाले दिनों मैं नुक्सान दायक होगा

Thursday, March 3, 2011

आज तीसरा दिन है की भारत भर के आई आर सी टी सी के अधिकृत ई टिकेट एजेंट्स के लोग इन बंद है
इस तीन दिनों मैं ना तो नयी बुकिंग हो पाई है और टिकेट कैंसल करने मैं भी पसीने छुट रहे है
लापरवाही का आलम यह है की इन तीन दिनों मैं न तो रेलवे और न ही आई आर सी टी सी द्वारा कोई अधिकृत सूचना जारी की गयी है की ऐसा कब तक चलेगा
इन तीन दिनों मैं जो एजेंट्स को नुक्सान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा ?
कोई कुछ भी कहने की स्थिति मैं नहीं है की ऐसा कब तक चलेगा
ज्यादा कुछ नहीं कम से कम इस दोरान आई आर सी टी सी से एक अधिकारिक बयान की तो अपेक्षा तो की जा सकती है

Tuesday, March 1, 2011

अधूरा स्टिंग ऑपरेशन

एक बार फिर से आई आर टी सी ने ई टिकेट बुकिंग एजेंट्स पर किया प्रहार
आज सुबह से ही भारत भर के सब एजेंट्स की लोग इन बंद कर दी गयी है बिना किसी सुचना के
कोई जवाब देने वाला नहीं
स्टार न्यूज ने स्टिंग ऑपरेशन तो किया लेकिन अधूरा जो छोड़ गया कई सवाल
- अगर स्टार न्यूज ने तत्काल टिकेट बुक किये थे सॉफ्टवेर के जरिये तो उनका पी एन आर नंबर क्यों नहीं दिखाया गया ?
- सिर्फ ई टिकेट एजेंट्स का स्टिंग ऑपरेशन क्यों ?
- रेलवे स्टेशन पर जो कालाबाजारी होती है उसका क्या ?
- उसके बारे मैं जब पुछा जाता है तो सब चुप क्यों हो जाते है ?
- क्या इस लिए की स्टेशन से होने वाले कमाई का हिस्सा मीडिया सहित सब लोगो मैं बांटा जाता है !
- रेलवे स्टेशन पर होने वाले धान्द्ली के लिए भी ई टिकेट एजेंट्स को निशाना बनाना कहा तक उचित है ?
- अगर ई टिकेट एजेंट्स को बुकिंग से रोकना है तो पहले इतना ज्यादा पैसा ले कर अधिकृत क्यों किया ?
- तत्काल और ओपनिंग डेट की बुकिंग के पहले एक घंटे RTSA को बंद क्यों नहीं किया जा रहा ?

यह सब हो रहा है आम जनता को फायदा पहुचने के नाम पर लेकिन इस कदम से आम जनता की परेशानी बढेगी या घटेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा